वित्त वर्ष 2017 में वित्तीय संसाधनों पर भारी दबाव रहने का अनुमान है। ऐसे में सरकार सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू करने से फिलहाल परहेज कर सकती है। पिछले हफ्ते केंद्रीय मंत्रिमंडल ने सचिवों की एक अधिकार प्राप्त समिति के गठन को मंजूरी दी थी, जो ऐसे उपाय तलाशेगी, जिनसे वेतन आयोग की सिफारिशें चरणबद्घ तरीके से लागू की जाएं ताकि सरकार पर एक ही वित्त वर्ष में इक_ïा 1,02,100 करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ न पड़े।
सरकार के एक शीर्ष अधिकारी ने कहा कि सचिवों की अधिकार प्राप्त समिति के पास एक विकल्प यह होगा कि वह केंद्रीय कर्मचारियों के भत्ते में बढ़ोतरी को टाल दे और सभी वेतनमान के लिए वेतन वृद्घि को हरी झंडी दे दे। वित्त मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक इन कर्मचारियों के वेतन में भत्ते का अनुपात 1:1.4 है। उदाहरण के तौर पर वित्त वर्ष 2016 के बजट में सभी केंद्रीय कर्मचारियों के लिए वेतन मद में 60,731 करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान लगाया गया था जबकि भत्ते पर करीब 84,437.4 करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान था।
इस कदम से वित्त मंत्री अरुण जेटली को चालू वित्त वर्ष में राजकोषीय घाटे को जीडीपी के 3.9 फीसदी और अगले वित्त वर्ष में 3.5 फीसदी तक रखने के लक्ष्य को हासिल करने में मदद मिलेगी। मान लें कि अगर वित्त वर्ष 2017 में सालाना व्यय करीब 18 लाख करोड़ रुपये (वित्त वर्ष 2016 के 17,77,477 करोड़ रुपये के करीब बराबर) रखा जाए, तो भी वेतन आयोग की सिफारिशों से इसमें 5.5 फीसदी का इजाफा हो जाएगा। सकल घरेलू उत्पादन की सुस्त वृद्घि दर और शुरुआती 8 महीनों में बजटीय अनुमान का महज 50 फीसदी कर संग्रह से सरकार पर दबाव की स्थिति है और अगले वित्त वर्ष में भी इसमें बहुत ज्यादा बदलाव की उम्मीद नहीं है।
इस बात की संभावना है कि 29 फरवरी को अपने बजट भाषण में जेटली वेतन आयोग की सिफारिशों को टालने का ऐलान कर सकते हैं। वेतन आयोग की सिफारिशों पर अधिकार प्राप्त समिति के गठन का मकसद इस कवायद के तहत सभी हितधारकों की सहमति लेना है। अधिकारी ने बताया कि बजट से पहले विभिन्न मंत्रालयों के साथ वित्त मंत्रालय के व्यय विभाग की बैठक करीब-करीब पूरी हो चुकी है। ऐसे में यह अनुमान लगाया जा रहा था कि वेतन आयोग की सिफारिशें लागू की जाएंगी। लेकिन अब प्रमुख विभाग के सचिवों को एक साथ लाना जरूरी हो गया था, क्योंकि उन अनुमानों में व्यापक कटौती की जरूरत है।
भत्ते पर यथास्थिति बनाए रखने से विभिन्न कर्मचारी संगठनों द्वारा न्यूनतम वेतन को बढ़ाए जाने की मांग को भी सरकार नजरअंदाज करने की स्थिति में होगी। वेतन आयोग ने न्यूनतम वेतन को प्रति माह 18,000 रुपये करने की सिफारिश की थी, जबकि कर्मचारी संगठन इसे 19,000 से 21,000 रुपये प्रतिमाह करने की मांग कर रहे हैं। आयोग के गणित के मुताबिक 70 फीसदी सरकारी कर्मचारी गैर-कार्यकारी दर्जे के हैं, जिनका अधिकतम शुरुआती वेतन 42,000 रुपये प्रति माह होगा। इसमें थोड़ी बढ़ोतरी से भी सरकार पर सालाना करीब 50,000 करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ बढ़ेगा। वेतन आयोग की सिफारिशें इस साल 1 जनवरी से लागू होंगी।
सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों में से कुछ चीजों को टालने की योजना में रेल मंत्रालय को साथ लेना जरूरी होगा। इस योजना को सफल बनाने के लिए रेलवे की ताकतवर यूनियनों को साथ लेना जरूरी होगा। रेलवे का वेतन बिल सालाना करीब 28,450 करोड़ रुपये है। अब रेलवे यूनियनों को समिति की ओर से औपचारिक पत्र भेजा गया है। हालांकि अधिकार प्राप्त समिति द्वारा भत्तों को टालने पर निर्णय लेने के बाद ही दिशा में आगे बढ़ा जाएगा। हाल ही में एक साक्षात्कार में वित्त राज्यमंत्री जयंत सिन्हा ने भी कहा था कि वेतन आयोग की सिफारिशों का लागू करना सरकार के लिए बड़ी चुनौती है।
Source: www.staffnews.in
No comments:
Post a Comment